सोमवार, 8 नवंबर 2010

चुनाव और राहुल गाँधी

राहुल गाँधी को भारत का युवा वर्ग बड़े ही सम्भाव्नावो के साथ निहार रहा है परन्तु बिहार में हो रहे इस चुनाव ने राहुल गाँधी की बौद्धिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। राहुल गाँधी का आर एस एस के बारे में की गयी टिप्पड़ी पर गौर करे तो सहज ही एक अविश्वास पैदा होता है कि क्या यह वही राहुल गाँधी है जिसे भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखा और प्रस्तुत किया जा रहा है या यह लड़का कोई नया नया सा लगता है। भारत के गरीबो कि झोपडी में जा करके उनके साथ बैठना बात करना उनके साथ रोटी के दो निवाले भी खा लेने वाले राहुल से आम जनता एक आशा कि निगाहों से देख रही है कि आम जन कि पीड़ा को पहचानने वाला भी इस धरा पर है विशेषत नेता वर्ग में। लेकिन आर एस एस कि राष्ट्र भक्ति के बारे में टिप्पड़ी करके जिस तरह कि बौद्धिकता का परिचय राहुल गाँधी ने दिया है वह सहज ही जन सामान्य कि भावना को तोड़ने वाला लगता है। अगर देश के तमाम संगठनो के बारे में ऐसी ही राय उनके दिमाग में है तो आने वाला भविष्य कोई सुखद दिखाई नहीं दे रहा है। क्या यह सिर्फ पोलिटिकल स्टंट है या उनकी अज्ञानता। ईश्वर करे कि यह सिर्फ पोलिटिकल स्टंट हो हलाकि उनके जैसे कद के नेता से ये उम्मीद नहीं कि जाती कि सिर्फ चुनावी रणनीति के कारण ऐसा बयां दे । राहुल जी अपनी पार्टी को बिहार कि सत्ता कि चाभी सौपने में आप अपनी विश्वास कि चाभी न खो दे। जनता का विश्वास एक ऐसी पूंजी होती है कि एक बार खो देने के बाद कभी वापस नहीं मिलती। यह बड़ा घटे का सौदा होगा।
विनय कुमार सिंह , लोकनाथ महाविद्यालय रामगढ चंदौली