मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

राजनीतिक सुरक्षा 

संसद में चल रही बहसों में एक अजीब सी बेचैनी और सहूलियत दिखाई दे रही है। यह देखना अद्भुत है कि किस तरह सभी वक्ता गण स्वयं का बचाव और दूसरे पर आक्रमण करने में अम्बेडकर का सहारा ले रहे हैं लेकिन यह करते हुए अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता को दूषित कर रहे हैं। अपनी श्रेष्ठता को साबित करने के लिए अम्बेडकर की आड़ में दूसरे लोगों के योगदान और निष्ठां को प्रश्नांकित कर रहे हैं. यह दुर्भाग्य है इस देश का कि गोडसे को स्थापित करने के लिए गांधी नेहरू को कलंकित करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है।  आनेवाली पीढ़ी को हम क्या बताने के लिए उत्सुक हो रहे हैं कि इस देश के लिए सर्वोच्च बलिदान गोडसे ने किया ?  अम्बेडकर के बहाने खुद को सही साबित करते हुए क्या हम यह विस्मृत नही कर रहे हैं कि उसी अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म को असहिष्णु बताते स्वयं धर्म परिवर्तन कर लिया था।  राष्ट्र का धर्म निरपेक्ष स्वरुप नहीं होना चाहिए ? इस पर विचार आवश्यक है तथा संदर्भो के सही विमर्श की आवश्यकता है। 

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