मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

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सोमवार, 8 नवंबर 2010

चुनाव और राहुल गाँधी

राहुल गाँधी को भारत का युवा वर्ग बड़े ही सम्भाव्नावो के साथ निहार रहा है परन्तु बिहार में हो रहे इस चुनाव ने राहुल गाँधी की बौद्धिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। राहुल गाँधी का आर एस एस के बारे में की गयी टिप्पड़ी पर गौर करे तो सहज ही एक अविश्वास पैदा होता है कि क्या यह वही राहुल गाँधी है जिसे भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखा और प्रस्तुत किया जा रहा है या यह लड़का कोई नया नया सा लगता है। भारत के गरीबो कि झोपडी में जा करके उनके साथ बैठना बात करना उनके साथ रोटी के दो निवाले भी खा लेने वाले राहुल से आम जनता एक आशा कि निगाहों से देख रही है कि आम जन कि पीड़ा को पहचानने वाला भी इस धरा पर है विशेषत नेता वर्ग में। लेकिन आर एस एस कि राष्ट्र भक्ति के बारे में टिप्पड़ी करके जिस तरह कि बौद्धिकता का परिचय राहुल गाँधी ने दिया है वह सहज ही जन सामान्य कि भावना को तोड़ने वाला लगता है। अगर देश के तमाम संगठनो के बारे में ऐसी ही राय उनके दिमाग में है तो आने वाला भविष्य कोई सुखद दिखाई नहीं दे रहा है। क्या यह सिर्फ पोलिटिकल स्टंट है या उनकी अज्ञानता। ईश्वर करे कि यह सिर्फ पोलिटिकल स्टंट हो हलाकि उनके जैसे कद के नेता से ये उम्मीद नहीं कि जाती कि सिर्फ चुनावी रणनीति के कारण ऐसा बयां दे । राहुल जी अपनी पार्टी को बिहार कि सत्ता कि चाभी सौपने में आप अपनी विश्वास कि चाभी न खो दे। जनता का विश्वास एक ऐसी पूंजी होती है कि एक बार खो देने के बाद कभी वापस नहीं मिलती। यह बड़ा घटे का सौदा होगा।
विनय कुमार सिंह , लोकनाथ महाविद्यालय रामगढ चंदौली

शनिवार, 27 मार्च 2010

Fwd: pariksha ki nautanki.



---------- Forwarded message ----------
From: vinay kumar singh <vnkmr.singh@gmail.com>
Date: 2010/3/13
Subject: pariksha ki nautanki.
To: pathaknama@vns.jagran.com
Cc: hindustanspeedpost@gmail.com


परीक्षा की नौटंकी
माध्यमिक शिक्षा परिषद् कि परीक्षाएं प्रारम्भ हो गयी हैं . विगत वर्ष कि भांति इस वर्ष भी बड़े बड़े दावे किये गए परन्तु परिणाम वही ढांक के तीन पात. समझ में नहीं आता कि हर बार माननीय मंत्री जी पूरे साल नियम उपनियम बनाने कि बात करते हैं. दागी विद्यालयों को परीक्षा केंद्र नहीं बनाया जायेगा कि बात करने वाला प्रशासन अंत में क्यूँ सो जाता है. यही नहीं बल्कि उससे भी दो कदम आगे जाते हुए उन विद्यालयों को अधिकतम छात्रों का परीक्षा केंद्र बना दिया जाता है जिनके पास मूलभूत सुबिधायों का अभाव ही नहीं बल्कि अनुभवी अध्यापकों का भी टोटा है. उसके बाद शुरू होता है विद्यालयों और उसके प्रधानाचार्यों पर कार्यवाही का नाटक. इस पूरी कवायद में छात्र  और छात्र हित की बात नहीं सोची जाती है. प्रशन ये उठता है कि आखिर सरकार चाहती क्या है और दिखाना क्या चाहती है. जिस तरह से परीक्षाएं चल रही हैं उनकी सुचिता एवं पवित्रता के बारे में सोचना परेशान करने वाला है. मंत्री जी की कार्यशैली पर उंगली उठाने कि हिम्मत किसी की नहीं हो रही है. परन्तु यह भी सोचना शेष है कि क्या इसके लिए सिर्फ सरकार ही दोषी है या इसमें हमारी भी हिस्सेदारी है. सिस्टम का अंग तो हम सभी हैं फिर सिर्फ सरकार या उसकी कार्य प्रणाली को दोष देकर हम कर्त्तव्य मुक्त हो जायेगें. यह अभी से सोचना प्रारम्भ करें कि ऐसी शिक्षा देकर हम देश एवं देश कि भावी पीढ़ी को कौन सी दिशा दे रहे हैं. गणतंत्र में सभी अपनी अपनी भूमिका को पहचानने का कष्ट करें. जय हिंद.
                  विनय कुमार सिंह , लोकनाथ महाविद्यालय रामगढ चंदौली.  

Fwd: For your news paper.



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From: vinay kumar singh <vnkmr.singh@gmail.com>
Date: 2010/3/28
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From: vinay kumar singh <vnkmr.singh@gmail.com>
Date: 2010/3/28
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महज संयोग या कुछ और !
मैं यह जानते हुए भी कि मेरी यह बात आपके समाचारपत्र में नहीं प्रकाशित होगी फिर भी यह कहना चाहता हूँ कि प्रदेश से लेकर केंद्र तक की सत्ता में शिक्षा के मंत्री पदों पर आसीन मंत्रियों में समानता महज संयोग है या कुछ  और है. जिस तरह के तुगलकी फैसले प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा मंत्रियों द्वारा लिए जा रहे हैं और उसपे भी तीन कदम आगे निकलते हुए केंद्रीय मंत्री के तुगलकी सुधारवादी फरमान आदि पर गौर करें तो एक बात अत्यंत स्पष्ट रूप से सामने आती है कि किस तरह शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग को खाद्य मंत्री जैसे शेकचिल्लियों के हवाले कर दिया गया है. आज के इन मंत्रियों के बयानों एवं कार्यों पर एक नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि सुधारों की बात कर रहे इन लोगों के दिमाग में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर कोई स्पष्ट योजना नहीं है सिवाय जनता में फैले इस विश्वास को छोड़कर कि यह नौटंकी महज अपना आर्थिक हिस्सा पाने से है. हो रही परीक्षायों में नक़ल रोकने में पूरी तरह अक्षम साबित हो चुका प्रशासन सिर्फ परीक्षा केन्द्रों को निरस्त करने एवं दोबारा परीक्षा करने कि बात कर रहा है और इसके लिए बाकायदा टाइम टेबल भी घोषित किया जा चुका है. प्रश्न ये उठता है कि क्या दोबारा होने वाली परीक्षा नक़ल विहीन होगी इसकी गारंटी ली जा सकती है वर्त्तमान शिक्षा - परीक्षा व्यवस्था को देखते हुए. क्या पिछले वर्ष दोबारा सम्पन्न करायी गयी परीक्षा नक़ल विहीन थी? या इन निर्णयों के पीछे  अर्थतंत्र का खेल खेला जाने वाला है? केंद्रीय मंत्री साहब भी दूरस्थ शिक्षा केन्द्रों से शोध कर रहे छात्रो की शोध डिग्रियों की वैधता के बारे में कुछ कहना चाहेगें या फरमान सुनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करली है और इन केन्द्रों को शोध डिग्रियों के नाम पर धन वसूलने पर अपनी अघोषित रजामंदी दे दी है. इस देश में विदेशी शिक्षण संस्थाओं के आ जाने मात्र से शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का दिवास्वप्न देखना छोड़ें और अपने घर के चिरागों को रौशन कर उजाला फैलाएं.
विनय कुमार सिंह , लोकनाथ महाविद्यालय रामगढ चंदौली.


सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

नेता कि वासना

बिहार के नेता ने यदि बार गर्ल के साथ नृत्य क्या कर दिया मिडिया वालों को खजाना मिल गयालगे उसकी फोटो दीखानेमै कहता हू कि जब अपने कृष्ण भगवान वृन्दावन में रास रचाते थे तो आपको कोई परेशानी नहीं थी । थोड़ा सा अपने नेता भगवान ने नृत्य क्या कर दिया लगे हल्ला मचाने।अरे भैया आजकल के नेताजी किसी कृष्ण भगवान से कम हैं। ये तो सोचो कि इससे बार गर्ल की भी तो इच्छा पूरी हुयी होगी। अपना सपना मनी- मनी की तर्ज पर कार्य कर रही इन बार बालाओं की मजबूरी समझते हुए नेताजी ने उन्हें कुछ फायदा पहुचाने की कोशिश की तो आप बुरा मान गए ।वैसे नेता भी आदमी ही होता है और मनोवैज्ञानिको की मानें तो सेक्स प्राथमिक आवश्यकता है। इस दिशा में सोचें और बी रिलैक्स यारों। चलते - चलते एक शरारत -
उनकी हर शाम गुजराती है दिवाली की तरह। हमने इक दीप जलाया तो बुरा मान गए।

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

Nautanki of Education

शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल साहब नित नए प्रयोग करते रहते है। दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत संस्थापित विश्वविद्यालयो में शोध कार्य कर रहे छात्रों के साथ नए प्रयोग करते हुए उन्होंने शोध कार्य किये जाने पर रोक लगादी है। अब ये उन्हें कौन समझाये कि ८००० रुपये प्रतिवर्ष १० से १५ हजार अन्य शुल्क जमा करने के बाद छात्र अपनी शोध कि डिग्री लेकर कहाँ जायेगा । वैसे भी हमारे देस में मंत्रियों से अपनी बात कर लेना जीते जी स्वर्ग प्राप्त कर लेने के बराबर है। अगर कोई ऐसा व्यक्ति इस ब्लॉग को पढ़ता है जो स्वनाम धन्य मंत्री जी तक बात पंहुचा सकता है तो उस महान व्यक्ति से सादर अनुरोध है कि कृपा करके शिक्षा कि उस परम सत्ता तक ये विनती पंहुचा दे कि दूरस्थ शिक्षा में शोध पर एक पब्लिक नोटिस जारी कर स्थिति सपष्ट करने कि कृपा करें जिससे भ्रम कि स्थिति समाप्त हो सके। अंत में एक शरारत सामान्य लोगों के लिए -
खुदा हमको ऐसी खुदायी न दे , कि अपने सिवा कुछ दिखायी न दे।