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From: vinay kumar singh <vnkmr.singh@gmail.com>
Date: 2010/3/28
Subject: Fwd: For your news paper.
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महज संयोग या कुछ और !
मैं यह जानते हुए भी कि मेरी यह बात आपके समाचारपत्र में नहीं प्रकाशित होगी फिर भी यह कहना चाहता हूँ कि प्रदेश से लेकर केंद्र तक की सत्ता में शिक्षा के मंत्री पदों पर आसीन मंत्रियों में समानता महज संयोग है या कुछ और है. जिस तरह के तुगलकी फैसले प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा मंत्रियों द्वारा लिए जा रहे हैं और उसपे भी तीन कदम आगे निकलते हुए केंद्रीय मंत्री के तुगलकी सुधारवादी फरमान आदि पर गौर करें तो एक बात अत्यंत स्पष्ट रूप से सामने आती है कि किस तरह शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग को खाद्य मंत्री जैसे शेकचिल्लियों के हवाले कर दिया गया है. आज के इन मंत्रियों के बयानों एवं कार्यों पर एक नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि सुधारों की बात कर रहे इन लोगों के दिमाग में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर कोई स्पष्ट योजना नहीं है सिवाय जनता में फैले इस विश्वास को छोड़कर कि यह नौटंकी महज अपना आर्थिक हिस्सा पाने से है. हो रही परीक्षायों में नक़ल रोकने में पूरी तरह अक्षम साबित हो चुका प्रशासन सिर्फ परीक्षा केन्द्रों को निरस्त करने एवं दोबारा परीक्षा करने कि बात कर रहा है और इसके लिए बाकायदा टाइम टेबल भी घोषित किया जा चुका है. प्रश्न ये उठता है कि क्या दोबारा होने वाली परीक्षा नक़ल विहीन होगी इसकी गारंटी ली जा सकती है वर्त्तमान शिक्षा - परीक्षा व्यवस्था को देखते हुए. क्या पिछले वर्ष दोबारा सम्पन्न करायी गयी परीक्षा नक़ल विहीन थी? या इन निर्णयों के पीछे अर्थतंत्र का खेल खेला जाने वाला है? केंद्रीय मंत्री साहब भी दूरस्थ शिक्षा केन्द्रों से शोध कर रहे छात्रो की शोध डिग्रियों की वैधता के बारे में कुछ कहना चाहेगें या फरमान सुनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करली है और इन केन्द्रों को शोध डिग्रियों के नाम पर धन वसूलने पर अपनी अघोषित रजामंदी दे दी है. इस देश में विदेशी शिक्षण संस्थाओं के आ जाने मात्र से शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का दिवास्वप्न देखना छोड़ें और अपने घर के चिरागों को रौशन कर उजाला फैलाएं.
विनय कुमार सिंह , लोकनाथ महाविद्यालय रामगढ चंदौली.
विनय कुमार सिंह , लोकनाथ महाविद्यालय रामगढ चंदौली.
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